Add To collaction

कामिनी भाग 15

कामिनी ने समन मुनि और उनके सभी शिष्यों को आदर पूर्वक बिठाया फिर उसने अपनी 1000 शखियों से एक साथ, मुखातिब होकर कहां

"यह दिव्य इत्र, तुम सभी अपने कैश पर लगा लो और आज तन, मन,धन से जो भी सेवा हो पाए,इन साधकों की करना,आज तुम्हारी सेवा में कोई कमी ना रह जाए, कोई तुमसे निराश ना हो जाए"!

फिर कामीनी ने उन सभी को वह इत्र वितरण किया और वह व्यंजनों से भरी थाली लेकर, सामन मुनि के सामने आई और उनके सामने प्रस्तुत की सभी सखियों ने भी उन सभी शिष्यों को भोजन परोसा,

"इन व्यंजनों की सुगंध से ही प्रतीत हो रहा है, इन्हें बहुत स्नेहपूर्वक बनाया गया है, मैं तुम्हारे आतिथ्य से बहुत प्रसन्न हूं"!सामन मुनि ने कहा

फिर सभी ने भोजन शुरू किया, सभी ने पेट भर भोजन खाया और सभी मस्त-मगन हो गए,कामीनी ने जलपान कराने के बाद, अपने खुले केशो को सामन मुनि के मुख पर लहराया, सावन मुनि केशव के स्पर्श से रोमांचित हो उठे और उन्होंने कहा

"सुंदरी तुम्हारे कैशो से मानो, स्वर्ग के पारिजात पुष्प की सुगंध आ रही है, मैंने इतनी मनमोहन सुगंध का अनुभव, कभी नहीं किया"!

"इस जगत में ऐसे बहुत से कार्य है,मुनिवर,,,,जो आपने कभी नहीं किए हैं"! कामीनी ने अपने आंचल से दुपट्टा हटाते हुए कहा

वहीं दूसरी तरफ, वह सभी शिष्य भी उन सुंदर यूवतियो पर आकर्षित हुए और उनकी प्रशंसा करने लगे, कामिनी ने भोजन में कामुकता बढ़ाने वाली औषधि मिलाई थी और उस इत्र का प्रभाव इतना शक्तिशाली था, जो नपुंसक को भी उत्तेजित करने का सामर्थ्य रखता था, इस षड्यंत्र के रहस्य से केवल कामिनी ही परिचित थी,क्योंकि वही उस षड्यंत्र की रचयिता थी और वह यह भी भली भांति जानती थी कि अगर उसने यह योजना सबको बता दी तो कोई उसका समर्थन नहीं करेगी, इसीलिए उसने इस षड्यंत्र को सबसे छुपाया था, तभी कामीनी ने अपने षड्यंत्र को आरंभ करते हुए, सामन मुनी से कहा

"मुनिवर"!"आप इतने व्रध्द होने के बाद भी बहुत ऊर्जावान प्रतीत होते हैं, मैंने इतने कठोर शरीर वाला कोई दअन्य पुरुष नहीं देखा"!कामिनी ने मुनि की भुजाओं को छूते हुए कहा

कामिनी के स्पर्श से मानो, मुनि के शरीर में आग लग गई हो,उसने कामिनी को हाथ को पकड़ कर चुम्मा और कहां

"मैंने,,,कभी भी अपने संपूर्ण जीवन काल में अपने वीर्य का उत्सर्जन नहीं किया है, अपने वीर्य के भंडार के कारण ही में सदैव ऊर्जावान और तरोताजा रहता हूं पर आज तुम्हारे कठोर स्तनों को देखकर, तुम्हारे गुलाब के पुष्प जैसे, होठों को देखकर,तुम्हारी लहराती कमर को देखकर और तुम्हारी मदमस्त जंघाओं को देखकर,मुझमें, तुम से प्रेम करने की अभिलाषा जागृत हुई है, मैंने बालपन में ही ब्रह्मचर्य का संकल्प लिया था और इस अभिमान के कारण मैं सदैव सुंदर से अति सुंदर स्त्री को भी मांस की भांति देखता था पर आज मुझे कुछ, भिन्न अनुभूति अनुभव हो रही है, मैं आज तुम्हारे साथ, समागम करने के लिए विवश हो गया हूं "! सामन मुनि ने कामिनी के गालो को छुते हुए कहा

"आपकी सेवा करना तो मेरा धर्म है, "अतिथि देवो भव:"! "अतिथि देवता के समान होते हैं, आपके साथ समागम करना, मेरे लिए गर्व के क्षण होंगे"!कामिनी ने सामन मुनिवर की जंघा को छुकर कहा

"तो फिर और विलंब ना करो, मनमोहिनी,,,मुझ में और धेर्य करने का सामर्थ्य नहीं है"! यह कहकर सामन मुनि ने कामिनी को अपनी ओर खींचा और उसे अपनी जंघा पर बिठाया और उसकी भुज कोई चुम्मा

फिर मुनि ने कामिनी की कमर को हाथ से सहलाया और उसके होंठो पर अपने होंठो की मोहर लगाई, होठों के स्पर्श से मुनिवर सब कुछ भूल गया और कामीनी ही उनका सर्वस्व हो गई, वहीं दूसरी तरफ, वह सभी 1000 शिष्य भी उन सुंदर स्त्रियों के योवन में डूब गए और उनके वस्त्र निकालने लगे, उनके सुंदर शरीर को चूमने लगे, उन सभी शिष्यो पर कामुक औषधि का इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि उन्हें उनके पास में ही उनके साथियों की गतिविधि का भी ध्यान नहीं रहा, ना लज्जा का भय रहा, पूरे महल में केवल सुंदर यूवतियों की आवाज आ रही थी, कामुकता का इतना विशाल संगम ना तो कभी हुआ था और ना किसी ने ऐसे दृश्य के बारे में सुना था, वासना के उस मेले में सभी यात्री गुम होकर, परम सुख का आनंद उठा रहे थे, तभी मुनिवर की वासना अपनी चरम सीमा पर भड़क उठी, उन्होंने कामिनी की वस्त्र से ढकी, जंघा को अपने हाथ से धीरे-धीरे सहलाया और उसके स्तनों पर अपना मुख रखा,जिस कामिनी ने वेश्या पुत्री होने के उपरांत भी कभी किसी को स्वयं को छूने तक नहीं दिया, जिसने अपने कुंवारे योवन को अपने प्रेमी के लिए संभाल कर रखा था,उसने आज प्रतिशोध की अग्नि में जलकर अपना वही, अनछुआ यौवन एक वृध्द संत को खुशी-खुशी सौंप दिया,मुनि ने उसके स्तनों से मुंह हटाया और और उसके मदमस्त होठों पर टूट पड़ा, कामिनी के रस भरे होंठो को गन्ने की तरह चूसने लगा, कामिनी को थोड़ी पीड़ा हुई पर उसने वह कष्ट सहा

फिर मुनि ने कामिनी को बाहों में भर लिया और पीछे से धीरे-धीरे उसके ब्लाउज के धागे खोलने लगा, सारे धागे खोलकर, उसने धीरे से ब्लाउज निकाला और उसे फेंका फिर उसने कामिनी के घुटने पर वस्त्र के नीचे हाथ डाला, वहां से अपना हाथ धीरे-धीरे सहलाता हुआ गुप्त अंग तक तक लाया, यह स्पर्श कामिनी के लिए सबसे ज्यादा रोमांचित करने वाला था, क्योंकि उसके गुप्त अंग तक, कभी किसी पुरुष का हाथ नहीं गया था, फिर मुनि ने कश कामिनी के घाघरे का नाडा़ खोला ओर उसे आराम से नीचे लेटाया, उसके घुटनों को चूमते हुए, धीरे-धीरे आगे बढ़ा और जंघाओं को खूब चुम्मा, उसके बाद उसके पेट पर पहुंचा ओर उसके पेट को होठों से चाटते हूए, उसके स्तनों पर आया,वहां भी उसने वह सब कुछ किया, जो उस स्थिति में हो सकता था, फिर मुनिवर ने अपनी धोती खोली और कामिनी का घाघरा निकालकर उसकी चीखे निकाल दी, उसके यौवन पर ऐसा आक्रमण, पहली बार हुआ था, मुनिवर ओर कामिनी के जीवन का यह पहला समागम था, इसीलिए बहुत समय लगा,कामीनी ने आनंद से ज्यादा कष्ट सहा पर प्रतिशोध की ज्वाला, उसके हृदय में बहुत त्रिव थी, इसीलिए उसने इस बलात्कार को स्वीकार किया, जब मुनिवर वीर्य निकला, तब उसकी वासना शांत हुई और कामिनी घायल अवस्था में उसी स्थान पर निर्वस्त्र पड़ी रही, क्योंकि उसे होश तोसब कुछ था पर उसके शरीर में हिलने ढूलने की उर्जा नहीं थी, उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे, क्योंकि वह जानती थी, आज उसने क्या गंवाया है"!

"आखिर कामिनी सामन मुनि और उनके शिष्यों का ब्रह्मचर्य नष्ट करके क्या प्राप्त करना चाहती है"?

"क्या सामन मुनि और उनके शिष्यों के साथ किया यही छल उसका पिशाचिनी बनने का कारण है या कोई और"?

अपने सभी द्वंद्व को और प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए, पढ़ते रहिए, कामीनी एक अजीब दास्तां

   20
1 Comments

Gunjan Kamal

17-Nov-2023 05:52 PM

👏👌

Reply